अगर नज़र इतिहास पर डाला जाए तो कांग्रेस पर जब स्वराजिस्ट हावी होने लगे और 1907 में सूरत में गरम दल और नरम दल के बीच कांग्रेस बाख गयी तो एक निहायत दूरदर्शी नेता राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने कांग्रेस की बागडोर सम्हाली और स्वराजिस्ट और मुस्लिम लीग से हाथ मिलाकर 1916 में हिन्दू-मुस्लिम एकता की बुनियाद रखी और कांग्रेस-स्वराजिस्ट-लीग को एकजुट करके स्वतंत्रता आंदोलन की मार्ग प्रसस्थ की।
इसके बाद कईं ऐसे मौके आये जहाँ अन्य दलों की अलग गुट बनकर कांग्रेस को चुनौती देने लगे ।। तब गांधीजी की चमत्कारी लीडरशिप ने कांग्रेस के उन लीडर्स पर भरोसा जताया जो विरोधियों के समान ही विचार रखते हो लेकिन साथ ही साथ यह भी निश्चित करते हो कि कांग्रेस पार्टी में सभी नेताओं को अपनी बात रखने का हक है एवं ये पार्टी सभी की पार्टी है।। इसमें दो उदाहरण निश्चित तौर पर सामने आते है ।।
1. पहला 20s के दसक में कम्युनिस्ट एवं सोशलिस्ट पार्टियों की लोकप्रियता को कम करने के लिए Jawaharlal Nehru एवं subhash chandra bose जैसे नेताओं पर भरोसा जताना।।
2. दूसरा मुस्लिम लीग और जिन्नाह की बढ़ती लोकप्रियता और पकड़ की काट निकालने के लिए मौलाना अबुल कलाम आजाद पर भरोसा जताना।।
किशनगंज कांग्रेस को भी ऐसी ऐतिहासिक मिसालों से प्रेरणा लेनी चाहिए और फिलहाल विरोधी पार्टियों से जो युवा पीढ़ी आकर्षित हो रहे है,इस संकट को देखते हुए एवं उसकी तोड़ निकालते हुए इलाके के युवाओं को अहम पदों की ज़िम्मेदारी देकर युद्ध स्तर पर इलाके के युवाओं में युथ कांग्रेस का प्रचार प्रसार करना चाहिए।।
इस सिलसिले की सुरुवात किशनगंज कांग्रेस, Mudassir Nazar भाई को सांसद प्रतिनिधि का पद से सुसज्जित करके कर सकती है।।
~ Mubasshir Aquil Ghaznavi