Saturday, November 20, 2021

तलाश 🌹💌

रोज़ ठोकरें खा रहा हूं;

रोज़ औंधे मुंह ज़मीन पे गिर रहा हूं;

कुछ नए और कुछ पुराने लोगों के तरह-तरह के चेहरें सामने आ रहे है;

कुछ के सहन करने लायक होते हैं; कुछ हल्का सा तकलीफ़ देते हैं;

और कुछ तो ऐसे भी होते हैं कि वे मेरी अंतरात्मा को पूरा अंदर तक झकझोड़ देते हैं;

मन रुआँसा हो आता हैं;

पर रोऊँ भी तो किसके आगे?

कौन है मेरा यहाँ?

किसको इतनी फ़ुर्सत है कि वो मेरा दुखड़ा सुने?

सब अपना उल्लू सीधा करने में लगे परे हैं।

ऐ ख़ुदा,

क्या आपकी बनाई दुनिया सचमे इतनी खुदगर्ज़ और बेरहम है?

क्या आपने हम इंसानों को बस इसलिए बनाया है कि हम बस इक दूसरे को खुद से ऊपर समझते रहें?

अपनी अना को मुत्मइन करने के लिए एक दूसरे को नीचा दिखाते रहें?

क्या ये दुनिया,जो इक बुरी ख़्वाब सी लगती है,क्षणभंगुर नहीं हैं?

हम तो महज़ इस दुनिया में मुसाफ़िर हैं;

जिसकी मंज़िल बस आप तक जाती है;

हम सबको लौटना है;

सबके अच्छे-बुरे अमल व आमाल का फ़ैसला होना है;

तो फ़िर हम इंशान आखिर किस ग़ुमान में हैं?

क्या हमें इस बात का डर नहीं रहा कि हमारी भी पेशगी होगी?

क्या हमें ये ऐतबार नहीं रहा कि हमारा भी इंसाफ़ आप ही के हाथों होना है?

बेशक़,हमारे पैरोकार "आका-ए-दो-जहाँ" होँगे;

जो हर मोमिन को ज़न्नत में दाख़िल करायेंगें;

पर इक सवाल मेरी ज़हनों-ज़हन में घर कर गया है;

क्या हम हकीक़त में मोमिन कहलानें लायक रह गए है???

~आज़ाद 
(इक भटका हुआ मोमिन)