फैलाकर झोली , रूह तड़पता रहेगा,
मेरे वजूद का ज़र्रा-ज़र्रा तुझे वापस पाने की तलब करेगा,,,
हालांकि मै गिरगिराउंगा, रोऊंगा, बिलखुंगा,
आँसुएँ बहाऊंगा, तेरी एक झलक पाने को आँखों से सैलाब बह निकलेगी,,
पर, जो मेरे दिल को पुरसुकूँ कर दे,
मेरे सारे दुःख-दर्द को छू कर दें,
अय दादी, तेरी वो आवाज़ नही होगी
जो आँगन में कदम रखते ही करता था तुझे सलाम,
दुनिया की सारी ख़ास बातें, जब हो जाती थी आम,
तेरे साथ, हँसने-बोलने का,खेलने-कूदने का,
अय दादी, वो रिवाज़ नहीं होगी ।।।
अय दादी, वो रिवाज़ नहीं होगी ।।।
~ Mubasshir (The mourning first Grandchild)