तुम्हारी सहर के हर अखबार झूठे!!
कसीदें क़ातिलों के पढ़ने वाले
मुहक़्क़ीक़,आलिम ओ फ़नकार झूठे!!
हरम पर,दैर पर और दर्सगाह पर
हैं काबिज़ बदचलन बदकार झूठे!!
फ़रेब-ए-फ़रदा-ए-ख़ुसरंग देकर
वबायें लाएंगे मक्कार झूठे!!
फ़क़त ताज़र नहीं काज़िब् तुम्हारे
सहाफी,मुंसिफ़ ओ सरदार झूठे!!
~mujahid mughal
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