जो झुका नहीं,जो बिका नहीं;
कहीं छुप-छुपा कर खड़ा नहीं;
जो डटे हुए हैं महाज़ पर;
मुझे उन सफ़ों में तलाश कर ...
मेरी चाची अनसीरा बेग़म 2006 से 2016 तक पंचायत समिति रही। 2016 के पंचायत चुनाव में किसी कारणवश उन्हें हार का सामना करना पड़ा।इसबार फिरसे हमने मन बनाया है कि फिर एकबार हम ये चुनाव लड़ेंगे और इंशाल्लाह जीतेंगे।पिछले कुछ दिनों से मैं अपने चाची के चुनाव प्रचार में था।मेरे चाची की तरफ़ से खुले आम आने के कारण मेरे कईं दुश्मन बन गए हालांकि कुछ दोस्त भी बने लेकिन हसद-जलन-ईर्ष्या वग़ैरा-वग़ैरह के कारण दुश्मन ज्यादा बने।
बहरहाल ये सफ़र भले ही चंद दिनों का ही हो लेकिन मज़ेदार और रोमांचक रहा।यही कुछ दिनों में मेरे कौन अपने है कौन पराये सब समझ मे आ गया।ये दुनिया एक तमाशा है,यहां हर शख्श इक किरदार को निभा रहा है कुछ जो है वो छुपा रहा है, कुछ जो नहीं है वो दिखा रहा है।कौन सही है कौन ग़लत ये या तो मेरा रब जानता है या सामने वाले इंशान का दिल।मेरे दोस्त और दुश्मन दोनो का इंसाफ मैंने अल्लाह पर छोड़ दिया है।मेरे तरफ़ से फिलहाल मेरे दोस्तों को प्यार और दुश्मनों को और ज़्यादा प्यार।
फ़िलहाल मैं कुछ निजी कारणों से चुनाव प्रचार से अपने आप को दूर कर रहा हूँ,ये भाँपकर की ये सही वक्त नही है।लेकिन जाते-जाते बस ये कहना चाहता हूँ कि -
"शेर भी अपना शिकार करने से पहले एक कदम पीछे लेता है"
ये तूफान से पहले का सन्नाटा है,अगली बार जो तूफान आएगी वो सबको तहस नहस कर देगी।।।
~आज़ाद
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